Tuesday, January 11, 2011

यादों की भरपाई

विस्मृत होकर भी,
स्मृति मे बची रही,
परछाईं को.
आज किन्ही,
बच्चों मे पाया,
अपनी उस,
तरुणाई को.

कुछ एकांत खोज,
कहीं पर,
अपने उपर,
मरना है.
कितने ही धुंधले,
चेहरों से,
जबरन परिचय,
करना है.

शब्दहीन बस,
भावों ही से,
संवादों को,
रचना है.
और बहुत सा,
जीना है-
यादों की,
भरपाई को.

आज किन्ही,
बच्चों मे पाया,
अपनी उस,
तरुणाई को.

नाम स्मरण,
ना आए तो,
थोड़ा सा,
अकुलाना है.
और उभर,
आने पर सहसा-
जैसे निधि,
पा जाना है.

स्वप्न पूर्व का,
मिल जाने पर,
लज्जा से,
सकुचाना है.
और किनारे,
बैठ डूबना है-
इस विस्तृत,
सागर में,
मुक्त लता सा,
लहराना है,
सोख-सोख कर
सोंधी सी,
पुरवाई को.

आज किन्ही,
बच्चों मे पाया,
अपनी उस,
तरुणाई को.

-शिशिर सोमवंशी
(पोनमूडी, केरल जनवरी २०१०)

1 comment:

  1. tinkon se bane pal, pal se bane lamhe ,aur lamhon ne waqt ko buna... har pal koi kisi ke sath nahi reh sakta,isiliye, khuda ne yadon ko chuna any ways vo beete din yaad dilaaa diye

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