Sunday, January 4, 2015

अच्छा लगा

तुमने छुआ,
छूकर कहा,
कैसे हो तुम?
अच्छा लगा.

वो उंगलियों,
के पोर थे.
जो संग,
अपने ले गये.
टीस मधुरिम,
प्रेम की.
बरसों बरस,
जिसको सहा.
सहकर मगर,
अच्छा लगा.

आँखों मे मेरी,
प्रश्न हैं.
मैं ख़ुद पहेली,
ही सही.
उत्तर न दो,
बूझो नहीं.
बस मौन
इनमें देख लो.
देखा मुझे?
अच्छा लगा.


-शिशिर सोमवंशी

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