Thursday, February 10, 2011

मछलियाँ और संबंध


कई साल बाद,
कहीं समय मिला.
और नही कटा-
चला आया मेले में.

सब कुछ था,
फिर भी भा गयीं-
रंग-बिरंगी मछलियाँ:
काँच के बर्तनों मे,
डूबती उतराती,
चपल और चंचल,
कोई शैतान बच्चे सी
मुँह चिढ़ाती हुई,
दूसरी किसी यौवना सी,
देर तक आँख मिलने से,
कुपित होती हुई.
कोई रूठे दोस्तों सी,
मुँह सुजाए.

समय होगा नही,
क्यूंकी होता नही कभी,
जानकर भी
ले लीं मैने,
कुछ मछलियाँ-
बड़े जतन से
अलग अलग रंगत की -
मगर बेजान.

प्लास्टिक की,
इसलिए कि वोह,
मेरे बिना भी तैर लेंगीं,
अकेले ही,

पानी बदलने का,
आग्रह नही करेंगी,
वायु के संचार,
और आहार की,
अपेक्षा भी नहीं.
मेरे साथ रहेंगी.

और रहीं भी,
कभी सुना नहीं उनसे,
मुझे पता था,
वो हैं मेरे पास-
हमेशा हर पल

............फिर
आज समय मिला,
कई सालों मे
तो मछलियों को देखा:
वैसे ही बिना शिकायत,
तैरते हुए उनको
मगर पाया-
खुश नहीं थीं.

मुझे माफ़ करना-
मेरे दोस्त- मेरे हमसफर,
मेरी उपेक्षा और.....
उस समय के लिए,
जो तुम्हारा था,
तुम्हे मिला नहीं-

मछलियाँ चाहे बोलें-
या ना बोलें.
समय मांगती हैं
.....और संबंध भी.

- शिशिर सोमवंशी

9 comments:

  1. सुंदर भाव...पशु-पक्षी-जानवर सब प्यार समझते हैं...

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  2. "मछलियाँ चाहे बोलें-
    या ना बोलें.
    समय मांगती हैं
    .....और संबंध भी"

    वाह-वाह शिशिर जी - अति सुंदर

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  3. bahut hi sundar rachna

    pasand aayi post

    aabhaar

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  4. अनुग्रहीत हूँ.
    सराहना सिर आँखों पर. प्रोत्साहित करते रहें.

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  5. इस बात में कोई भी दो राय नहीं है कि लिखना बहुत ही अच्छी आदत है, इसलिये ब्लॉग पर लिखना सराहनीय कार्य है| इससे हम अपने विचारों को हर एक की पहुँच के लिये प्रस्तुत कर देते हैं| विचारों का सही महत्व तब ही है, जबकि वे किसी भी रूप में समाज के सभी वर्गों के लोगों के बीच पहुँच सकें| इस कार्य में योगदान करने के लिये मेरी ओर से आभार और साधुवाद स्वीकार करें|

    अनेक दिनों की व्यस्ततम जीवनचर्या के चलते आपके ब्लॉग नहीं देख सका| आज फुर्सत मिली है, तब जबकि 14 फरवरी, 2011 की तारीख बदलने वाली है| आज के दिन विशेषकर युवा लोग ‘‘वैलेण्टाइन-डे’’ मनाकर ‘प्यार’ जैसी पवित्र अनुभूति को प्रकट करने का साहस जुटाते हैं और अपने प्रेमी/प्रेमिका को प्यार भरा उपहार देते हैं| आप सबके लिये दो लाइनें मेरी ओर से, पढिये और आनन्द लीजिये -

    वैलेण्टाइन-डे पर होश खो बैठा मैं तुझको देखकर!
    बता क्या दूँ तौफा तुझे, अच्छा नहीं लगता कुछ तुझे देखकर!!

    शुभाकॉंक्षी|
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’
    सम्पादक (जयपुर से प्रकाशित हिन्दी पाक्षिक समाचार-पत्र ‘प्रेसपालिका’) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)
    (देश के सत्रह राज्यों में सेवारत और 1994 से दिल्ली से पंजीबद्ध राष्ट्रीय संगठन, जिसमें 4650 से अधिक आजीवन कार्यकर्ता सेवारत हैं)
    फोन : 0141-2222225(सायं सात से आठ बजे के बीच)
    मोबाइल : 098285-02666

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  6. प्रिय 'निरंकुश' जी,
    इस व्यस्त जीवन में मेरी रचनाओं को समय देने हेतु आपका आभारी हूँ.
    प्रेम के दिन पर आपकी पंक्तियाँ अच्छी लगीं.
    रचनाधर्मिता के लिए आपका समर्पण भी.
    मिलते रहेंगे.

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  7. उत्तम प्रस्तुति. आभार...

    हिन्दी ब्लाग जगत में आपका स्वागत है, कामना है कि आप इस क्षेत्र में सर्वोच्च बुलन्दियों तक पहुंचें । आप हिन्दी के दूसरे ब्लाग्स भी देखें और अच्छा लगने पर उन्हें फालो भी करें । आप जितने अधिक ब्लाग्स को फालो करेंगे आपके अपने ब्लाग्स पर भी फालोअर्स की संख्या बढती जा सकेगी । प्राथमिक तौर पर मैं आपको मेरे ब्लाग 'नजरिया' की लिंक नीचे दे रहा हूँ आप इसका अवलोकन करें और इसे फालो भी करें । आपको निश्चित रुप से अच्छे परिणाम मिलेंगे । कृपया जहाँ भी आप ब्लाग फालो करें वहाँ एक टिप्पणी अवश्य छोडें जिससे दूसरों को आप तक पहुँच पाना आसान रहे । धन्यवाद सहित...
    http://najariya.blogspot.com/

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  8. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  9. धन्यवाद संगीता जी, आपका ब्लॉग भी देखा. रचनात्मक है. बधाई.

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