Tuesday, February 15, 2011

रात को समर्पित

थक के चूर हूँ,
बेदम हूँ,
बेसुध हूँ मैं.

मुझको बाहों में,
पड़े रहने दो,
बस यूँ ही-
बिना संवाद.

बहुत मुश्किल,
बहुत भारी था,
ये दिन,
आज का दिन.

किसी दुःस्वप्न सा,
गुजरा है जो,
अंगुल-अंगुल
तुम्हारे बिन.

शर्वरी तुम हो,
सखी कोई,
मिली हो इतने
अंतराल के बाद.

-शिशिर सोमवंशी
(पुरानी कविता; १३ अक्तूबर २००३)

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