Wednesday, December 2, 2015

पश्चाताप

जिन कथनों
को तुम्हें पुनः
समझाना पड़े,
सीधे शब्दों में से
कोई सुविधा का
अर्थ बतलाना पड़े,
इस पुनरावलोकन
से कठिन
श्राप कोई नहीं। 

तुम्हारे सत्य को
फिर से स्थापित
करने का उपक्रम,
स्वयं को झूठा
कहने का श्रम, 
इस व्यर्थ के
प्रायश्चित से बुरा
पाप कोई नहीं।

किसी को
प्रत्याशा अधिक
हो जाती है,
अपनी क्षमता के 
परे आशा अधिक
हो जाती है।
प्रेम से कहे
शब्दों के समय
के साथ दुर्बल
होने सा संत्रास,
स्नेह की दृष्टि
पाकर उसे
खोने से बुरा
संताप कोई नहीं।

मैंने सुना था
शब्द ऊर्जा हैं
तैरते रहते हैं
कहे जाने के बाद
युगों युगों तक,
मैं तुम्हारे प्रथम
अभिसार का ही
श्रवण करता हुआ,
तुम्हें प्रतिकार के
पश्चाताप से
रक्षित कर,
आयु को अतीत
कर गुज़रूँगा।

अनर्गल आक्षेपों की
दुस्सह पीड़ा
का दंश
जिसे भोगा है
मेरे जीवन ने
उसकी छाया
तुम्हारे उज्जवल
अस्तित्व पर
नहीं गिरने दूंगा ।

अवगत हूँ मैं
चाह को जानना
नितांत सरल
और चाह को
मानना  कितना
दुरूह है
इस जग में-
निर्दयी शब्दों की
अनवरत वर्षा में
मौन रह झूठ
सिद्ध होने सा
अभिशाप कोई नहीं।

शिशिर सोमवंशी 

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