Saturday, October 30, 2010

भावों का अतिरेक

अपनी पीड़ा के सब अनुभव,
अपने अंतर मे दबा लिए.
बेशर्म हँसी के पर्दे में,
मन के क्रंदन सब छिपा लिए.

आँखों का जल,ठहरा निच्‍छल
रह रह के बाहर छलक पड़े.
तुम इसके धोखे मत रहना,
ये बात किसी से मत कहना.

जीवन का छल,चलता अविरल,
ऐसे किस्से हो जाते हैं,
स्वप्नो के सुंदर दर्पण के,
अन्गित हिस्से हो जाते हैं.

मेरे आँसू- मेरी भाषा,
मेरे जीवन की परिभाषा
सम्मान इन्हे इनका देना,
ये बात किसी से ना कहना.

-शिशिर सोमवंशी


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