Friday, October 2, 2015

उसके लिए

असत्य है कि मन
नहीं करता उसका
अपने सुख को
समेट लेने का ।
उन्मुक्त हो
भय और संशय के
बंधनों से उबर कर ,
प्रहरी दृष्टियों के
सर्वथा असभ्य  
अवांछित
एवं अनिधिकृत
प्रवेश से विद्रोह कर।
पक्षी की तरह
स्नेह के विस्तृत
नीले आकाश में
दूर तक विचर कर
जी उठने का। 

आस अतिशय नहीं,
अपेक्षाओं का भार
विकराल है।
अपने मन का समय
अत्यंत सीमित
कर्म की गति तीव्र
और कृपण काल है। 

वर्षों से निरंतर
अंतहीन प्रलाप में
दुखद बिछोह के
अपने विलाप में
अनभिज्ञ क्यों
बन जाता हूँ
सब जानते हुए
हठ के अतिरेक में
मोह के संताप में।
मानता नहीं कि
आसान है मेरे लिए
कठिन  उसके लिए
मुझे बस उसी को
सोचना है और
उस को बहुत सारा
सोचना होता है -
मुझको सोचते हुए। 

                       शिशिर सोमवंशी 

No comments:

Post a Comment