Tuesday, October 20, 2015

ज़िंदगी का आँचल

वर्तमान के 
उथलेपन से 
निकाल कर 
ज़िंदगी को बहुत 
क़रीब जाकर 
समझने का मन 
अब नहीं होता।
पास जाने से 
रंग छोड़ने 
लगता है उसका 
सतरंगी आँचल।  
और मैं उसे
लज्जित नहीं
देखना चाहता  
बदरंग होते हुए। 

वैसे भी
पास जाकर
मिला हूँ जब भी
यही लगा
इसे अपनाना
इस से
प्रेम करना
इतना सरल नहीं
जैसा तुमने
जाते समय
बैठा कर
समझाया था।
मेरा अपना
सत्य  इतना है -
दूरी से प्रेम
बढ़ता है।
१९ जून १९९३ 

शिशिर सोमवंशी

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