Monday, April 20, 2015

अपनी पसंद का जीवन

स्वयं के प्रति
एक दो
अपनी पसंद
के भ्रम
पाल लिए.
दूसरे के प्रति
कुछ पूर्वाग्रह.
अपनी विकृति को
सर्वथा स्वाभाविक,
और लोभ कर्म
पूर्णतया प्राकृतिक,
योग्यतम की
उत्तरजीविता
सिद्ध करते हुए.
जी लिया जीवन
सरल बना के,
सहज कर के.

इतने पर भी
भेदती रहती है
सत्य की पैनी
दृष्टि मुझको-
दूर नहीं हुआ
दर्पण से मेरा
पूर्वजन्मों का भय.

-शिशिर सोमवंशी

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