थक के चूर हूँ,
बेदम हूँ,
बेसुध हूँ मैं.
मुझको बाहों में,
पड़े रहने दो,
बस यूँ ही-
बिना संवाद.
बहुत मुश्किल,
बहुत भारी था,
ये दिन,
आज का दिन.
किसी दुःस्वप्न सा,
गुजरा है जो,
अंगुल-अंगुल
तुम्हारे बिन.
शर्वरी तुम हो,
सखी कोई,
मिली हो इतने
अंतराल के बाद.
-शिशिर सोमवंशी
(पुरानी कविता; १३ अक्तूबर २००३)