Saturday, October 30, 2010

आज जी लें सारा जीवन

अपने सब पूर्वाग्रहों को पोस कर,
सारा जीवन जी लिए-
ज़िंदा रहे?
-शायद नहीं.

टुकड़े टुकड़े बाँट कर
हिस्सा हिस्सा काट कर
जो ज़रा सा भी अलग था; ज़रा सा भी नया था
देख कर भी अदेखा जान कर,
स्वार्थ की पतली गली पहचान कर,
चलते रहे.
आगे बढ़े?
-शायद नहीं.

आज भूलें बात कोई,
आज तोड़ें एक भ्रम,
भूल कर संदेह सारे,
कोई सच स्वीकार कर के,
देर से ही

-आज जी लें सारा जीवन


-शिशिर सोमवंशी


सौ बार

सौ बार कुचलने पर भी,

उग जाता हूँ
टूटी माला स्वप्नो की,

रोज़ बनाता हूँ
तेरी आँखों अपनी छवि,

जिस पल पाता हूँ,
सौ बार मृत्यु को परे हटा
जी जाता हूँ

-शिशिर सोमवंशी


चलने वाले को नमन


जो जा रहा है वो समय है,
जो पिछड़ रही है वो उम्र है,
जो चलती रहेगी वो ज़िंदगी है
जो नही थकेगा वो आदमी है-

समय की चाल पर,
उम्र के हर साल पर
जीवन की लय-ताल पर
गिरने-संभलने वाले को नमन
हर चलने वाले को नमन.

- शिशिर सोमवंशी

आवरण


मुझ पर फैला आवरण,
मुझ से बली है.
मुझ से पहले ही,
सब से मिलता है,बात करता है-
और सब उस से मिल कर ही,
लौट जाते हैं.

सुनता हूँ कई बार,
लोगों से अपने बारे मे-
कुछ भी अपना सा,
नही लगता है.


-शिशिर सोमवंशी

आज फिर

तुम्हे आज जो नाम याद करके भी याद नही,
और भुलाने से भी नही भूला-
मैं कोई और नही तुम्हारा वो प्रेम हूँ,

जो तुमने जताया नही
तुम्हारे मन का वो भाव,

जो तुमने बताया नही.

कह दो कहना चाहो- आज
क्यूंकी आज फिर उसी रोज़ की तरह-
गुनगुनी धूप खिली हुई है,

और चुभती भी नही

- शिशिर सोमवंशी



भावों का अतिरेक

अपनी पीड़ा के सब अनुभव,
अपने अंतर मे दबा लिए.
बेशर्म हँसी के पर्दे में,
मन के क्रंदन सब छिपा लिए.

आँखों का जल,ठहरा निच्‍छल
रह रह के बाहर छलक पड़े.
तुम इसके धोखे मत रहना,
ये बात किसी से मत कहना.

जीवन का छल,चलता अविरल,
ऐसे किस्से हो जाते हैं,
स्वप्नो के सुंदर दर्पण के,
अन्गित हिस्से हो जाते हैं.

मेरे आँसू- मेरी भाषा,
मेरे जीवन की परिभाषा
सम्मान इन्हे इनका देना,
ये बात किसी से ना कहना.

-शिशिर सोमवंशी