Saturday, October 30, 2010

सौ बार

सौ बार कुचलने पर भी,

उग जाता हूँ
टूटी माला स्वप्नो की,

रोज़ बनाता हूँ
तेरी आँखों अपनी छवि,

जिस पल पाता हूँ,
सौ बार मृत्यु को परे हटा
जी जाता हूँ

-शिशिर सोमवंशी


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