इतने पर
भी मन के भीतर जो प्रेम बचा कर आया हो।
किंचित
उसका हो जाने का मन मेरा करने लगता है।
उत्सव
की मधुरिम रागिनियों में रुदन दबा के लौटा हो।
समझा कर
अपने साथी को जो बात छुपा के लौटा हो।
उस पर
यह गीत लुटाने का मन मेरा करने लगता है।
मौन
पराजय से अपनी दो विजय सुनिश्चित कर दे जो।
अपने
स्वप्नों की बलि दे के साथी का जीवन भर दे जो।
एक उसकी
विजय दिलाने का मन मेरा करने लगता है।
पीड़ा को संचित निधि माने मेहनत से
उसे सहेजे पर।
हर्षित जीवन जब देखे तब अपने प्रियतम को पा जाए।
ऐसा पागल बन जाने का
मन मेरा करने लगता है।
ऐसा
प्रेमी विरला जिसका जग कितना ही उपहास करे।
पाने
खोने से परे निकल वह विरही हो उल्लास करे।
इस योग
पे शीश नवाने का मन मेरा करने लगता है।
सेवा में
ReplyDeleteनभ-छोर एक सांध्य-दैनिक समाचार पत्र है। आठ पृष्ठ के इस समाचार-पत्र में हम पाठकों की मांग के अनुरूप सुधार करते हुए ब्लॉगर्स को भी महत्वपूर्ण स्थान देने के इच्छुक हैं। आपका सहयोग इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। भविष्य में नभ-छोर में प्रकाशित होने वाले ब्लॉगर्स में हम आपके ब्लॉग्स को स्थान देना चाहते हैं। इसके लिए हम आपसे आपके ब्लॉग एड्रस से ब्लॉग को डाउनलोड कर उनके प्रकाशन के लिए आपसे अनुमति चाहते हैं, ताकि नभ-छोर के करीबन 30 हजार से अधिक पाठक आपके ब्लॉग को पढ़ सकें।
धन्यवाद
निवेदक
ऋषी सैनी
संपादक (नभ-छोर)
संपर्क: 9812047342
Email - nabh.hsr@gmail.com
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