Tuesday, November 18, 2014

मैंने तुम्हे मुक्त किया

मैंने तुम्हे मुक्त किया
मेरे प्रिय, मेरे मित्र,
मेरे जीवन.
मेरी अवस्था
मेरी गति की,
तुम मत सोचना
दुख होगा.
तुम्हे दुख हो जिस मे
उसमे क्या-
मुझे सुख होगा?
इतना जान लो
किसी को बंधन
से मुक्ति चाहिए
किसी को इन्ही
बंधनो मे मुक्ति.

तुमने कहा
विस्मृत कर दो,
स्मृतियाँ बाँधती हैं.
तुमने कहा
स्मित, उत्साहित,
मुखरित बनो.
मैने कहा कर लूँगा,
जो कहोगे
जैसा कहोगे.
मेरे लिए तुम्हारा
कहना ही बहुत.

मैंने सुना, सारा सुना
तुम्हारा कथन-
श्रद्धा से,
आभार से.
आख़िर तुमने भी
कहा स्नेह से,
अधिकार से.
मेरे मीत, सखा मेरे
मेरे प्रति
तुम्हारी सदभावना,
मेरे आज के लिए
मेरे शांत
उन्नत और परिपूर्ण
कल के लिए,
तुम्हारी व्यथा,
तुम्हारा चिंतन,
मुझसे सहा नही जाता.
अतः मुक्त किया तुम्हे,
तुम्हारी पीड़ा से -
अपराध-बोध से.
मेरी पीड़ा
मेरे भीति की
तुम मत सोचना.
आवश्यक है-
किसी के लिए
बोध से मुक्ति
किसी को इसी अपराध
इसी लोभ मे मुक्ति है.

मुझे निशक्त नही
देख सकते तुम,
वैसे ही तुम्हे व्यथित, 
नही देख पाता मैं.
देखी नहीं जाती,
तुम्हारी अतीत को,
भाग्य की निष्ठुरता
सही सिद्ध करने की
निष्फल चेष्टा.
नही सही जाती
वर्तमान को मर्यादित
करने की असफलता.
इस अंतर-विरोध
इस दुरूह द्वंद से
मुक्त किया तुमको.
मेरे द्वंद की
मेरी अनुभूति की
तुम मत सोचना.
सब उचित है-
किसी को द्वंद से
मुक्ति चाहिए-
किसी को इस
सुमधुर अलौकिक 
द्वंद मे मुक्ति है.

 - शिशिर सोमवंशी 

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