जीवन की जिजीविषा की अभिव्यक्ति;
कविताओं के भाव, परिस्थितियाँ और सन्दर्भ
मेरे हैं-
आपको अपने लगें तो
लिखना सार्थक.........
नही तो अनर्गल शब्दों की गति.
Saturday, October 30, 2010
आज जी लें सारा जीवन
अपने सब पूर्वाग्रहों को पोस कर, सारा जीवन जी लिए- ज़िंदा रहे? -शायद नहीं.
टुकड़े टुकड़े बाँट कर हिस्सा हिस्सा काट कर जो ज़रा सा भी अलग था; ज़रा सा भी नया था देख कर भी अदेखा जान कर, स्वार्थ की पतली गली पहचान कर, चलते रहे. आगे बढ़े? -शायद नहीं.
आज भूलें बात कोई, आज तोड़ें एक भ्रम, भूल कर संदेह सारे, कोई सच स्वीकार कर के, देर से ही
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