Monday, August 11, 2014

मौसमों की करवट

बिल्कुल वैसे ही जब
मौसमों की करवट पर
पेड़ों के पत्तों का रंग
बदलता है.
ठीक वैसे ही
हवा बहती है अपनापे से
मुझको छूकर-
याद आता है कुछ
तस्वीर सा आँखों में
उभर आता है.

काम मौसमों का
और क्या है?
कभी तपना
तरसना और बरसना
कभी बेबाकी से-
सारी साज़िश तो
यादों को बचाने की है.

हर याद का चेहरा हो
ज़रूरी तो नहीं
और यह भी नहीं
होठों से कोई नाम
पुकारा जाए.

कभी जब मौसमों की
आहट पर,
पेड़ के पत्तों पे जो
नज़र जाए-
कोई अपना सा-
हवा का झोंका
तुमको छूकर अगर
गुज़र जाए.
किसी बीते हुए मौसम
की याद कर लेना-

और ज़्यादा तो कुछ
नही होता-
दिल के भीतर का
बिखरा सा-
बेतरतीब सा घर
थोड़ा सजता है
संवर जाता है.


-शिशिर सोमवंशी

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