मेरे जीवन ना मैं चंदन
मेरे जीवन ना मैं चंदन
फिर भी घिस करके अपना तन
तेरे माथे तिलक लगाऊं
तू शीतल हो जाए-
रुक जाऊं, सुस्ताऊं
बात पुरानी याद करूँ
थोड़ा रो लूँ या मुस्काऊँ
ऐसा कोई पल हो पाए.
काया के इस
मलिन रूप को,
सांझ उतरती हुई
धूप को,
रह रह कर सुलगाऊँ
संभव कोई छल
हो जाए.
-शिशिर सोमवंशी
No comments:
Post a Comment