जीवन की जिजीविषा की अभिव्यक्ति; कविताओं के भाव, परिस्थितियाँ और सन्दर्भ मेरे हैं- आपको अपने लगें तो लिखना सार्थक......... नही तो अनर्गल शब्दों की गति.
Saturday, October 30, 2010
सौ बार
चलने वाले को नमन
आवरण
आज फिर
तुम्हे आज जो नाम याद करके भी याद नही,
और भुलाने से भी नही भूला-
मैं कोई और नही तुम्हारा वो प्रेम हूँ,
जो तुमने जताया नही
तुम्हारे मन का वो भाव,
जो तुमने बताया नही.
कह दो कहना चाहो- आज
क्यूंकी आज फिर उसी रोज़ की तरह-
गुनगुनी धूप खिली हुई है,
और चुभती भी नही
- शिशिर सोमवंशी
भावों का अतिरेक
अपनी पीड़ा के सब अनुभव,
अपने अंतर मे दबा लिए.
बेशर्म हँसी के पर्दे में,
मन के क्रंदन सब छिपा लिए.
आँखों का जल,ठहरा निच्छल
रह रह के बाहर छलक पड़े.
तुम इसके धोखे मत रहना,
ये बात किसी से मत कहना.
जीवन का छल,चलता अविरल,
ऐसे किस्से हो जाते हैं,
स्वप्नो के सुंदर दर्पण के,
अन्गित हिस्से हो जाते हैं.
मेरे आँसू- मेरी भाषा,
मेरे जीवन की परिभाषा
सम्मान इन्हे इनका देना,
ये बात किसी से ना कहना.
-शिशिर सोमवंशी
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