Tuesday, December 14, 2010

प्रकाश की परंपरा

दूर क्षितिज के पास,
कुरूप काले पर्वतों ने,
छिपा लिया है-
तेजस्वी सूर्य को.

और दिया है निमंत्रण,
तिमिर के असुरों को,
आओ आगे बढ़ के,
जीत लो उजाले को.

किंतु क्रम प्रकाश का,
रुक नही जाता,
चन्द्रिम किरणें तब,
प्रतिनिधित्व करती हैं,
सूर्य के प्रयास का.

ऐसे ही किसी दिन,
अमावस भी आती है,
जब सूर्य नही होता,
और चंद्रमा भी नही,

सुदूर किसी दीप की,
लौ जगमगाती है,
अमावस जीत कहाँ पाती है?

-शिशिर सोमवंशी

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