![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgf058x14QUOa3Jly13h0bXidDETU74LOB1t-jCE6MwghRinICn0w1j_49ZHgmWUVoFy70mN4F0xGksbR3gOcoD5wj9EBeDOdQAOUHL0iOOuX3rWlIoeQ4U8z2Au_r3ZoIwKAT4j6r5ydo/s320/painting_river_rocks-h.jpg)
वो शांत वृक्ष/
उनके गहरे हरे पत्ते/
पसरी हुई पगडंडी पर/
रह रह के उभर आते/
वो बैंगनी से फूल/
खिल खिलाती नदी/
और उसकी धार में/
गुदगुदाहट से/
हंस हंस के लोटते/
गोल सफेद पत्थर.....
उन्ही पतों पर/
वहीं रहते हैं.
उसी तस्वीर मे/
हर रूप- हर रंग मे/
बसते हैं अभी.
आओ लौट चलें/
कि वो भागे नही/
हमारी तरह/
हम से कहते हैं/
माँ ने बच्चों के घर/
लौट के आ जाने पर/
कुछ कहा है कभी?
-शिशिर सोमवंशी
[देहरादून से दिल्ली की शताब्दी रेल से यात्रा मे २४ सितंबर २०११.]
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