वही लड़की
पसंद है.
जो फूल नहीं,
सुगंध है.
वही जो कभी,
ख़ूब बोलती
है मुझसे,
और कभी
चुप हो जाती है
कई दिनों तक.
यह वही
लड़की है.
जो बिल्कुल
मेरी ही
जैसी है,
मानती है
इस बात को
और मान कर
मानना नही,
चाहे कभी.
लड़की जिसे
देखकर
मेरे साथी
बोलते हैं
मेरे पीछे-
यही है वो?
मैं चाहकर भी
उसका हाथ
थाम के
कह नहीं
पाता हाँ यही.
वो मुझे कहने
नही देती.
जाने कौन
सा संकोच
उसको रोकता है?
मुझे देखती है,
सराहती है,
सोचती है.
साथ अपने
रहने नहीं देती.
जो उदास
होती है
तो मौसम
बोझिल सा,
लगता है मुझको.
जो अपने
आप मे,
मौसम ही है
मेरे लिए.
ज़रा सी धूप
सुबह सुबह की
गुनगुनी,
रिमझिम बरसती
पहली बारिश
की सोंधी
महकती सी नमी.
इंद्रधनुष मे
ना समेटे जाएँ
इतने अनूठे रंग.
मुझे कुछ
नही चाहिए
बस
उसका
सानिध्य
उसका संग,
किंचित
गहरा
तनिक अंतरंग.
लड़की जो
अपने आप में
संपूर्ण है.
इसलिए नहीं
वो मेरी चाह
मेरी पसंद है.
इसलिए कि
वो पूरा होने
का ढोंग नहीं
करती औरों
की तरह.
वो जूझती है
हार को तय
जान कर,
उबार लेती है,
अपने आस पास
के संबंधों को.
जो अजाने ही
डर डर कर
उसे भयभीत
कर जाते हैं.
लड़की जो
अपनी उम्र
से बड़ी हो
गयी किसी
दिन अकस्मात.
जो उलझी हुई
थी अपनी
उधेड़बुन मे.
जो बँधी रही
नियति और
नियमों मे
अनचाहे प्रबल
बंधन मे.
मुझे क्यों
वही दिखी
उसका पीड़ा
उसका दमित
संघर्ष नही?
मैं क्यों
उसके हँसी पर
ही मुग्ध रहा,
उसके अंतर के
मनोभाव नहीं
पढ़ पाया.
मैं क्यूँ
अपनी पिपासा
से आगे
चाहकर भी
नहीं बढ़ पाया.
सच है
सपनों मे
पाता हूँ
उसे अपने.
मेरा बस
नहीं चलता
उन पर.
यथार्थ में
मैं उसके
स्वप्न जीना
चाहता हूँ
मुट्ठी भर.
अपने
प्रेम को
नहीं रखूँगा
स्वयं
से
बाँध कर
खुद में
ही समेटकर.
इस
स्नेह-संबंध में
मैं उसे
मुक्त
करना
चाहता हूँ.
शिशिर सोमवंशी
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