इतने पर
भी मन के भीतर जो प्रेम बचा कर आया हो।
किंचित
उसका हो जाने का मन मेरा करने लगता है।
उत्सव
की मधुरिम रागिनियों में रुदन दबा के लौटा हो।
समझा कर
अपने साथी को जो बात छुपा के लौटा हो।
उस पर
यह गीत लुटाने का मन मेरा करने लगता है।
मौन
पराजय से अपनी दो विजय सुनिश्चित कर दे जो।
अपने
स्वप्नों की बलि दे के साथी का जीवन भर दे जो।
एक उसकी
विजय दिलाने का मन मेरा करने लगता है।
पीड़ा को संचित निधि माने मेहनत से
उसे सहेजे पर।
हर्षित जीवन जब देखे तब अपने प्रियतम को पा जाए।
ऐसा पागल बन जाने का
मन मेरा करने लगता है।
ऐसा
प्रेमी विरला जिसका जग कितना ही उपहास करे।
पाने
खोने से परे निकल वह विरही हो उल्लास करे।
इस योग
पे शीश नवाने का मन मेरा करने लगता है।