![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2_4KTcszZJbgR-WjpknGGu1seCtGw3-zKkxhAtb0C250Wo4dlzQu0hJWT5QoZlYL42ogTHLxvzw2dJxVn40iTi3U9MOn7c-85UkV08wyRhM4MkM5Fs3q1SwgvDZW5p-EF2IDCHA-SH1U/s320/shillong+026.jpg)
मैं वही तस्वीर हूँ,
जिसे बनाते बनाते,
तुम्हारा मन उचट गया.
रंग वहीं आस पास थे,
तुन्हे दिखने बंद हो गये.
कोई रंज़ नहीं;
जो मैं पूरी न हुई.
जो पूरी ही हो जाए-
वो ज़िंदगी कहाँ?
ये जो भी है,
झूठी-सच्ची, कच्ची-पक्की..
और अधूरी सी सही-
तुम्हारी है.
एक बात कहूँ तुमसे?
कुछ देर को रंगों,
की तलाश को भूल,
कूची को किनारे कर,
अपने हाथों से:
बना दो मुझको.
सजाओ इतना ही-
कि सह सकूँ मैं भी;
जो यह बदरंग है;
धूमिल सा है-
मेरा अपना एक,
रंग ही तो है
चीज़ अपनी है-
मुझे प्यारी है.
-शिशिर सोमवंशी
its fantastic sir........
ReplyDeleteThanks my young friend. Its heartening that people reading poems.
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