अपने प्रेम को तुमसे,
अपनी इन्ही रीती
अंजुरिओं में,
तुम देख लेना।
मैं भी यहीं रहूँगा
तुम भी यहीं रहोगे।
मुस्कुरा रहे हो तुम,
हमेशा की तरह,
सुन कर
मेरा अतिरंजित,
आत्म घोष।
जब सम्मुख होगे,
जब सम्मुख होगे,
मैं अपलक
तकूँगा तुम्हें निशब्द,
और तुम्हे सुनाई देगा,
और तुम्हे सुनाई देगा,
तुम देख लेना।
मैं भी यहीं रहूँगा
तुम भी यहीं रहोगे।
मुझे तुम्हारी
इस दृष्टि में,
अपने लिए
उमड़ते कौतूहल में ही,
अपने लिए
उमड़ते कौतूहल में ही,
सुख है अतुलित।
अपनी बाँहों
को व्यर्थ विस्तार,
नहीं दूँगा,
तुम्हारी अपूर्व
आभा की ओर।
ना ही करूँगा ,
कोई भी प्रयास
तुम्हारी अप्रतिम
काया की सुगन्धि
को बांधने का ,
को बांधने का ,
प्राप्ति के स्थापित
साँचों में कठोर।
साँचों में कठोर।
तुम देख लेना।
मैं भी यहीं रहूँगा
तुम भी यहीं रहोगे।
मुझे बहुत है
यदा कदा का
आशातीत संपर्क,
अनिश्चित संसर्ग,
तुम्हारे मार्ग पर
विचरण यूँ ही
अनायास।
एक ही समय
पर एक स्थान पर
साथ होने भर
का आभाष।
तुम देख लेना
मैं भी यहीं रहूँगा
मैं पा ही लूँगा
अपने प्रेम को तुमसे,
यथार्थ से उठकर
बिना पाये,
बिना जताये
और बिना बताये
तुम्हारे रंगों को
अपने मन के पन्नों
सोखकर -संजोकर
तुम देख लेना।
यथार्थ से उठकर
बिना पाये,
बिना जताये
और बिना बताये
तुम्हारे रंगों को
अपने मन के पन्नों
सोखकर -संजोकर
तुम देख लेना।
मैं भी यहीं रहूँगा
तुम भी यहीं रहोगे।
-शिशिर सोमवंशी
-शिशिर सोमवंशी
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