मरुथल से शुष्क यथार्थ और
प्लावित व्यावहारिकता
के मध्य दम घोंटते
नीरव एकाकीपन से....
थकी साँसों को जागृत और
जीवन से स्वत: किए
पुराने अनुबंध को स्मृत कर-
मैं लौट आया हूँ
अपनी अकिंचन दुनिया मे-
सबके लिए- अपने लिए...
कि अभी और जीने का मन है।
अपेक्षा- अनापेक्षा,
प्रतिस्पर्धा और पश्चाताप
की धूल कस के फटक
अनुराग- विराग,
हर्ष और प्रलाप
को परे झटक
विगत की गणित को विस्मृत कर-
मैं लौट आया हूँ
अपनी अकिंचन दुनिया मे-
सबके लिए- अपने लिए....
कि अभी और जीने का मन है।
प्लावित व्यावहारिकता
के मध्य दम घोंटते
नीरव एकाकीपन से....
थकी साँसों को जागृत और
जीवन से स्वत: किए
पुराने अनुबंध को स्मृत कर-
मैं लौट आया हूँ
अपनी अकिंचन दुनिया मे-
सबके लिए- अपने लिए...
कि अभी और जीने का मन है।
अपेक्षा- अनापेक्षा,
प्रतिस्पर्धा और पश्चाताप
की धूल कस के फटक
अनुराग- विराग,
हर्ष और प्रलाप
को परे झटक
विगत की गणित को विस्मृत कर-
मैं लौट आया हूँ
अपनी अकिंचन दुनिया मे-
सबके लिए- अपने लिए....
कि अभी और जीने का मन है।
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