मैनें जी कर देखा है
मोहभंग से मोहभंग तक,
स्वपनों की जो माला है.
इस माला के मोती बनकर,
मैनें खुद को ढाला है.
पीड़ा के अविरल सम्मोहन,
संकोचों और संदेहों मे,
प्रश्नचिह्न और प्रतिवादों,
के मध्य सतत ही,
थोड़ा बहुत निकाला है.
यही समय बस यही घड़ी,
मुझसे हंस कर कहती है,
तुमने तो जी कर देखा है,
जीवन मद का प्याला है.
- शिशिर सोमवंशी
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