तुम जीते या समय जीता,
उस आदमी से,
तुम्हारी जीत पर,
जिसका ईमान हारा नहीं.
उस डाली से,
जिसे तुमने तोड़ दिया,
झुका नहीं पाए.
उस किताब से,
जो तुम्हे नापसंद थी,
और जला दी गयी.
मगर जिसकी राख,
तुम्हारे चेहरे पर फैल कर,
बग़ावत कर रही है.
चलो मान लिया तुम जीते-
जीत मुबारक तुमको,
फिर भी ये ज़रूरी नहीं,
कि तुम्हारे जीतने से,
हर बार कोई हार गया.
- शिशिर सोमवंशी
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