Sunday, November 21, 2010

प्रश्न कोई और नही

ज़िंदगी ने जितने/
प्रश्न किये/
उस से ज़्यादा/
मैने जवाब दिए/

इतना सब हुआ/
इतना होने पर/
जो हल ना हुई/
उस पहेली का/
कोई हल निकले.

जिसे तुमने यथार्थ/
समझ के जिया/
जिस भ्रम को मैने/
बरसों पाला/
और दुलार दिया/

सत्य- असत्य का/
द्वंद क्यों पालें/
अंतरात्मा पर/
बोझ क्यों डालें/

जैसे बीती है/
बीतने दो ना-
जैसे निकला/ है आज/
कल निकले.

अब नया प्रश्न/
कोई और नही/
खुद से लड़ने/
का कोई ठौर नही/

अपने बारे क्यों/
सफाई दें/
जो समझते नहीं/
उन्हे समझाएँ/

उनके कहने से/
बोल पड़ें/
और उँगली को/
देख रुक जाएँ/

सांस घुटती है/
ऐसे जीने से/
दम निकलता है/
इसी पल निकले.

-शिशिर सोमवंशी
(ऐसे प्रश्नों पर जिनका उत्तर पूछ्ने वाले ने तय किया हुआ है)

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