अद्भुत पल के बाद,
हुआ क्या विशेष है,
वो मुझे और भी
सुंदर लगने लगा।
स्मृतियाँ उसकी
पहले भी अभिराम थीं,
हमेशा से ही-
मधुरिम छवियों में जीवंत ।
हृदय के अभिलेखों में
तीव्रता से अंकित ,
स्वास के स्वरों में
छंद और ताल से रसवंत ।
आज उस एक
अद्भुत पल के बाद,
हुआ क्या विशेष है,
वो मुझे उन स्मृतियों से
बेहतर लगने लगा।
यूं भी होता है
जीवन में कदाचित ,
एक क्षण उस से भी
भव्य हो जाता है।
मैंने जिया वही क्षण,
उसके स्नेह से रंजित ।
सानिध्य से ओत प्रोत,
उसकी विलक्षण कल्पना
उसके द्वारा रचित एवं
उस से ही परिभाषित ।
आज उस एक
अद्भुत पल के बाद,
हुआ क्या विशेष है,
वह छूटा हुआ रास्ता,
पुनः मुझे जागृत
स्वप्नों का स्वर्णिम
नगर लगने लगा।
शिशिर सोमवंशी
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